शब्द अनि मेरो मौनता !
आज भोलि !
शब्दहरु - निकै कन्जुस भएको छ !
हरपल क्षणहरु सिंगार्न !
भावहरुलाई गुञ्ज दिन !
मन देखि मनसँग सञ्चार गराउन !
म मेरा मस्तिष्कमा
वटुल्ने प्रयत्न गरिरहेछु !
ति शब्दहरु !!
किन बाटो विराए तिनले – अचेल ?
ठ्याक्कै चुम्बक झैँ,
समान धुर्व भए पनि विकर्षण भै'रहेछ !
‘शब्द' जसले ध्वनि उत्पन्न गराउछ !
जब, शब्दको अभाव रहन्छ !
तब सबै चिज रहन्छ त - शान्त नै !
ए, हजुर …!
न त सिस्टमनै म्युट छ !
न त स्पिकरनै खराब छ !
छ त : खालि शब्दहरुको अनिकाल !
‘शब्द' विहिन –म
पानि नभएको खोलाको बगर हु !
जसरी मध्य रात पछिको सड्कमा,
मातेको मान्छेको भाषणले -
विचलित रहन्छ शहरहरु …!!
उसै गरी निसासिएको छु !
शब्दहरुको अनुपस्तिथिमा – म !
किन यति विध्न भाउ खोजेको ?
यो देखेर चुर हुदै मुर्मुरिन्छु -
…. शब्द ! शब्द !! शब्द !!!
ठुलो आक्रोशका साथ
मेरो अघि प्रस्तुत हुन्छ,
शब्दको प्रतिविम्ब !!
अनि गर्वका साथ फतफताउन थाल्छ !
‘हो ! मेरो भाउ बढेकै हो !
हरेक कलाको मुल्य हुन्छ, इज्जत हुन्छ !
हरेक बस्तुको ठाउँ अनुसार
आ-आफ्नै अस्तित्व हुन्छ !’
(शब्द विहिन – म ,मौन रही ठिङ्ग अडीरहेछु !
- उ एकोहोरो कराई रहेछ … )
‘म –‘शब्द’ तिम्रो मगजमा नआउनु
म दुर्लभ हुन् खोज्या होइन !
‘म –‘शब्द’ तिम्रो मगजमा नअडिनु
म विलय हुन् खोज्या होइन !
तर म –‘शब्द', तेरो देशको
मान्छे जस्तो सस्तो र मुल्य हिन छैन !
तर म –‘शब्द', तेरो देशको
मान्छे जस्तो वेमतलबी र निकम्मा छैन !!
( …. म सुनी रहे, बस ! निशब्द: )
( Via : फोटो )
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बेदनाथजी, क्या हो तपाईंले त यो कविता मेरो लागी लेख्नुभए जस्तो छ नि? म पनि यस्तै अवस्थितीमा छु अत: मन पर्यो कविता ।
ReplyDeleteशब्द र समयको अनिकाल त यता पनि उस्तै हो बेद जी,......... जे होस् अनिकालका शब्दहरु बटुलेर भए पनि सृजना चैं राम्रो गर्नु भएछ। धन्यवाद !
ReplyDeleteधन्यबाद दिपक जडित दाइ & प्रकाश समीर जी !
ReplyDeleteचल्दै छ जिन्दगी अनि यो सुस्त लेखाइ .... भन्छन नि अनिकालमा विउ जोगाउनु हो त्यहि मात्र गर्न खोज्या हो !