अरुलाई दोष दिइ , आफु हुने बोस
शोषण र अराजकतामा रम्ने नगर सोख !
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वेला न कुवेलामा उड़्ला है होस
वरु देश बनाउने - निकाल्नु पर्छ जोस !
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असहाय र पिडितलाइ आदर मान
बाचि बचाई गरी खान जान
!
########################
निरन्तर रुपमा परिश्रम गर्नु पर्छ भन
उन्नति र सफलतामा लाग्नु पर्छ कन !
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त्यहा छ अन्न हजारौ मन
आफ्नै पाखा पखेरोमा खन !
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तिम्रो धेरै काम छ, मान शान पनि
हाउ'छ भाऊ'छ - छ कति धेरै धन !
त्यही हुने'छ तिम्रो निश्चल मन !!
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एकदम सही निष्कर्ष भएको कबिता |
ReplyDeleteमलाई कबिताको बारेमा खासै थाहा नभएर पनि होला प्रस्तुतिमा भने अझै सुधार गर्ने ठाऊँ छ की जस्तो लाग्यो | म नै उस्तो पो हो की ?
धन्यबाद सुझाब को लागी मिलन जी !
ReplyDeleteतपाइले wordpress use गर्नु भएजस्तो लाग'थ्यो नि ?
www.meellon.wordpress.com
हैन र ,फेरी नया ब्लग क्रेट गर्नु भए जस्तो छ नि ?
हुन त मलाई मनपर्ने वर्डप्रेस नै हो तै पनी यसो ट्राई मार्दै जांदा ब्लगस्पट नि खुलेको हो | म वर्डप्रेस मै निरंतरता दिने बिचार गर्दै छू...
ReplyDeleteआजको समयको परिस्थिति भावमा राम्रो गरी उच्छवास पोख्नुभएको छ । यसलाई माझ्ने ठाउँ भने निकै छ है । सामान्य दिनचर्याको कुराकानी जस्तै भएको छ कविता ।
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